Monday, June 29, 2020

फर्रुखाबाद जनपद के हिन्दी कवि

फर्रुखाबाद जनपद के हिन्दी कवि

                                                                   -डा० राजकुमार सिंह
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परम पवित्र दोआवा क्षेत्र की इस उर्बर भूमि ने अनेक संस्कृत कवियों, पंडितों एवं दार्शनिकों को जन्म दिया जिन्होंने साहित्य-क्षेत्र को अपने सौरभ से भर दिया। बाण, ह्वेनसांग तथा इतिसंग आदि सभी के विवरणों से कन्नौज के राजा हर्ष के विद्या-प्रेमी होने के प्रमाण मिलते हैं। उसने स्वयं नागानन्द, प्रियदर्शिका तथा रत्नावली नामक तीन नाटकों की रचना की थी। हर्ष के अतिरिक्त महर्षि कपिल, बाण भट्ट, भवभूति, राजशेखर, विशाखदत्त शर्मा, श्री विक्रम भट्ट, सूर्यवादीप, शंखधार आदि अनेक रचनाकार इसी मिट्टी से उत्पन्न हुए।
फर्रुखाबाद जनपद के हिन्दी कवियों की भी एक सुदीर्घ परंपरा है। हिन्दी साहित्य के आदिकाल से ही यहाँ के कवियों के नाम सप्रमाण मिलने लगते हैं, जिनकी जानकारी हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रंथों, खोज रिर्पोटों एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से प्राप्त होती है। इस जनपद के हिन्दी कवियों का अद्यावधि विवरण प्राप्त कराने वाला कोई ग्रंथ प्रकाश में नहीं आया। इस दिशा में संवत् 2012 में प्रकाशित वचनेश अभिनन्दन ग्रंथ ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिससे कुछ कवियो का परिचय प्राप्त हो जाता है। अभी तक फर्रुखाबाद के कवियों एवं उनके कृतित्व पर स्वतंत्र रूप से कोई कार्य नहीं हुआ है, जिसकी अपेक्षा है।
फर्रुखाबाद जनपद के साहित्य-तीर्थों में कन्नौज, फर्रुखाबाद, तिर्वा और कम्पिल आदि का स्मरण किया जा सकता है, जिनमें कन्नौज और फर्रुखाबाद हिन्दी कवियों के गढ़ थे। कन्नौज से सम्बंधित कवियों में भट्ट केदार तथा मधुर कवि ही इस जनपद के प्रारम्भिक हिन्दी कवि हैं, जिनका उल्लेख "राठौड़ा री ख्यात" में मिलता है। भट्ट केदार (समय संवत्-1225 ने जयचन्द्र प्रकाश जो अभी तक अप्राप्त है और मधुकर आर्विभावकाल सं० 1240 ने "जयमयंकजसचन्द्रिका" लिखा। जयमयंकजसचन्द्रिका में जयचन्द्र की कीर्तिगाथा सुरक्षित है।
कन्नौज के ही कवि परमानन्ददास (सं०-1607 के आस-पास अष्टछापीय कवियों में एक हैं। अष्टछाप में महाकवि सूरदास के बाद आपका ही स्थान आता है। दो ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। ध्रुव चरित्र और दानलीला। इनके अतिरिक्त परमानन्द सागर में इनके 835 पद संग्रहीत हैं। इनके पद बड़े ही मधुर, सरस और गेय हैं।
कान्यकुब्ज अन्तर्वेद के घाघ (सं०-1753) अपनी कथोक्तियों, लोकोक्तियों तथा नीति सम्बंधी रचनाओं के कारण लोकविख्यात हैं। रचनाएँ सामाजिक और ग्रामीण बोलचाल की भाषा में हैं-
मुये चाम ते चाम कटावै, भुइ सकरी मा सोवै।
घाघ कहैं ये तीनों भकुआ, उढ़रि गये पै रोवैं।।
फर्रुखाबाद जनपद के कम्पिला नगर वासी महाकवि तोषनिधि एक प्रसिद्ध कवि थे। ज्ञातव्य है कि भाषा काव्य के आचार्य महाकवि तोषनिधि जिन्होंने सुधानिधि’ (सं०-1691)नखशिख और विनय शतक तीन ग्रंथों की रचना की है, दूसरे कवि हैं जो शृंग्वेरपुर इलाहाबाद जनपद के रहने वाले थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने दोनों कवियो को एक कर दिया है, किन्तु शिवसिंह सेंगर, ग्रियर्सन और पं० कृष्णविहारी मिश्र ने दोनों कवियों को भिन्न-भिन्न माना है। अभीष्ट कवि तोषनिधि (उपस्थित काल स०-1798)के मिश्रबंधु विनोद से छः ग्रंथों का पता चलता है- कामधेनु, भैयालाल पचीसी, कमलापति चालीसा, दीन व्यंग्यशतक और महाभारती छप्पनी। (माधुरी, नवम्बर-1927, पृ०-584-85)में इनकी सात रचनाओं का उल्लेख है- भारत पंचशिका(यही विनोद का महाभारत छप्पनी ग्रंथ प्रतीत होता है। दौलत चन्द्रिका, राजनीति, आत्मशिक्षा, दुर्गापचीसी,(संभवतः यही भैयालाल पचीसी है)नायिका भेद(अपूर्ण) और व्यंग्यशतक,। इनकी शैली सरल, सरस तथा स्वाभाविक है। एक अन्योक्ति देखिए-
ठाठ कियौ है भली विधि सों अरु पाग सँभारि लखी परछाहीं।
ऊँचे हयन्द गयन्दन पै धरे भेरि नगारे हैं फौजन माहीं।
ठाठ फजीहत को निधि तोष औ पैरन मैं तरवारन बाहीं।
ऐरे सिपाही बिचारि ले तू इन बातन में मन सूर है नाहीं।।
 सरोज सर्वेक्षण में मनीराम नामक तीन कवियों का उल्लेख मिलता है, जिनमें दो मिश्र हैं- मनीराम मिश्र, सांडी, कानपुर और मनीराम मिश्र कन्नौज। कन्नौज वाले मनीराम मिश्र (उपस्थित काल सं०-1839) नें छंद छप्पनी नामक एक सुन्दर ग्रंथ की रचना की है, जिसमें पिंगल के संकेतों को भली-भाँति खोला गया है। नागरी प्रचारिणी सभा काशी की खोज रिर्पोट 1912/106 में छंद छप्पनी का उल्लेख है। कन्नौज निवासी लाला हनुमान कवि (उन्नीसवीं शताब्दी, फर्रुखाबाद के सदाशिवलाल शर्मा (1800-1865) और मकरन्दनगर निवासी ईश्वरी कवि (समय अज्ञात)इस जनपद के प्रसिद्ध कवि थे। इनमें से सदाशिव लाल द्वारा रचित युक्ति समूह का ही पता चलता है। अन्य के स्फुट छन्द मिलते हैं। तिर्वा नरेश राजा यशवन्त सिंह जी(सं० 1806 से 1871 हिन्दी के प्रसिद्ध रीति कवियों में से एक हैं। शिवसिंह सरोज (265/226)में इनके तीन ग्रंथों- शृंगार शिरोमणि, भाषा भूषण और शालिहोत्र  का उल्लेख है। शृंगार शिरोमणि की अनेक प्रतियाँ खोज में प्राप्त हुयी हैं पर शालिहोत्र की प्रतियों का पता नहीं चल सका और भाषा भूषण तिर्वा नरेश जसवन्त सिंह की रचना न होकर जोधपुर नरेश जसवंत सिंह राठौर की रचना है। भ्रम से कहीं-कहीं यह भी स्वीकार किया गया है कि प्रसिद्ध कवि ग्वाल ने रसिकानन्द नामक ग्रंथ की रचना इन्हीं के दरबार में रहकर की थी, पर ऐसा नहीं है। ग्वाल ने इस ग्रंथ की रचना सं०-1879 में नाभा नरेश जसवंत सिंह के नाम पर की थी। शृंगार शिरोमणि ग्रंथ का एक छन्द अवलोकनीय है-
लाल के भाल पै पावकु-सी अवलोकति जावक जोति जगाए।
दौरि के गोरी भरे अँसुआ जसवन्त सखी सों कहै चितलाए।
दीनै हमैं जुबताय हमारी सी बूझत तोहिं हितू हितु पाए।
कालि तौ दूजी को ही को हुतो अब आजु कहौ ये कहाँ हैं लगाए।।
फर्रुखाबाद नगर के महाकवि राम जू भट्ट (सं०-1867-1950) ने आचार्यत्व प्रदर्शन के लिए लक्षण ग्रंथ शृंगार सौरभ की रचना ब्रजभाषा में की थी। दोहा तथा घनाक्षरी छन्द में लिखा गया यह ग्रंथ वास्तव में शृंगार का सौरभ है। कम्पिल निवासी कविवर तुलसीराम (सं०-1871-1900) ने ज्ञान कल्लोलिनी नामक ग्रंथ का प्रणयन किया है। बताया जाता है कि इन्होंने कृष्ण कथा का भी छन्दोबद्ध वर्णन किया है, लेकिन यह ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका। कम्पिल के ही सुकवि मिश्र ने मेम विनोद’ और फर्रुखाबाद के गोविन्द प्रसाद महाभारती (सं०-1893-1963) के भीष्म जीवन चरित्र और जगद् विलास नामक ग्रंथ की भी जानकारी प्राप्त होती है। सराय मीरा, कन्नौज के निवासी देवी सहाय वाजपेई (सं०-1890-1965 ने भी गीत और कवित्त लिखे हैं (उनके किसी स्वतंत्र ग्रंथ का पता नहीं चलता। कन्नौज के गणेश दत्त शास्त्री (सं०-1937 के लगभग शिवपुरी सुषमा और फर्रुखाबाद, खड़िहाई के निवासी श्री शिवचरन जी शुक्ल ने प्रमोद प्रकाश ग्रंथ का प्रणयन किया। फर्रुखाबाद के जाने माने कवियों में श्री शिवनारायण जी द्विवेदी रमेश(सं०-1932-1992 का नाम स्मरणीय है, जिनका बिलेलेले उपनाम भी मिलता है। आपके मनमौज, गंगा लहरी, श्री रामविवाह, रमेशानुभव, कान्यकुब्ज पचीसी ग्रंथ प्रकाशित हैं। बिलेलेले की रेल पेल का अवलोकन कीजिए-
आली फाग की उमंग अंग अंग राग रंग 
हाँसी की तरंग पै तरंग उठै बेरि बेरि।
ऊधम मचावै इठलावै इतरावै गावै
इत उत धावै लावै एकै एक घेरि घेरि।
कूदि किलकारी देत गारी देत तारी 
भरि पिचकारी देत गेर कींच में लथेरि।
तामैं अलबेली बिलेलेले जी अकेले 
रेले पेले ठेले घुसे जात हहरी हरषि हेरि।
साहित्य के दृष्टिकोण से फर्रुखाबाद का गौरव जिन कवियों ने बढ़ाया, उनमें बचनेश का नाम अग्रणी है। आपका जन्म सं०-1932 में फर्रुखाबाद में हुआ था। आपकी प्रतिभा बहुमुखी थी। यही कारण है कि आपने गद्य और पद्य दोनों में ही सफलता हासिल की। प्रमुख काव्य ग्रंथों में- नीति कुंडल, आनन्द लहरी, नवरत्न, मनोरंजिनी, बचनेश शतक, भारती भूषण, धर्म ध्वजा, धर्म पताका, युग भक्त, बचन विलास, ध्रुव चरित्र, विनोद, श्री शिव सुमिरिनी, शान्त समीर, शबरी और हरिदास उल्लेखनीय हैं। आपके सैरन्ध्री, प्रहलाद चरित्र, रामलीला और खून की होली नाटक तथा नन्दाबाई व लाल कुमारी उपन्यास भी पठनीय हैं। आपकी कविता में स्वाभाविकता के साथ व्यंग्य और परिहास का अच्छा पुट मिलता है। लक्ष्मी की निर्लज्जता कविता का आनन्द लीजिए, जो विनोद से उद्धृत है-
आती बड़े चाव से, रिझाती हाव-भाव से,
पिलाती मन्द ताव से हवास होस खोती है।
मूड़ कटवाती, छलछन्द करवाती अन्त-
सींग दिखलाती न किसी की सगी होती है।
बचनेश ताज्जुब क्या बेटी बहू बड़ों की ये,
रमा हरजाई हो जो मरजाद धोती है।
लाज हो पसम, जब घर की रसम ऐसी,
छाती पर बाप की खसम संग सोती है।
सुकवि सर्वश्री लाल मणि पाण्डेय (प्रमोद प्रकाश), मथुरा प्रकाश, अनूप, लल्लू लाल, सुरसरि कवि, लाला सीताराम भाई, गोविन्दराम भट्ट, पं० रामभरोसे वाजपेई प्रेमनिधि, जयनारायण शर्मा, पं० अयोध्या प्रसाद अग्निहोत्री, रामचन्द्र जी पागल, श्यामसुन्दर (प्रेमपचीसी) शिवदत्त शर्मा हरि, गो० मन्नूलाल जी मनु, पुत्लाल शुक्ल प्रकाश, गो० श्यामलाल (श्याम विलास) राजाराम पाण्डेय, मंजुल (आनन्द सोपान), प्रभृति कवियों ने भी स्फुट काव्य रचनाएँ करके फर्रुखाबाद जनपद के साहित्य की श्री वृद्धि की है।
कवि पं० बाबूराम शुक्ल (सं०-1922-1994)फर्रुखाबाद के एक सफल कवि, संपादक, तंत्रमंत्रकर्मकाण्डाचार्य तथा अच्छे मल्ल भी थे। अपने लल्लुगत,मलेच्छोक्ति सुधाकर श्री शालीन सुधाकर, श्री शक्ति सुधाकर, हरिरंजनम्, तुलसी सूक्ति सुधाकर, श्री पाणिनि सूक्ति सुधाकर, गुरु नक्षत्रमाला आदि ग्रंथों की हिन्दी, संस्कृत में रचना की। इन्होंने गीता का आल्हा में अनुवाद भी किया। आप हिन्दी और संस्कृत के अच्छे पंडित भी थे। रामचरित मानस की चौपाई-
  सब कर मत खग नायक ऐहा । करि अराम पद पंकज नेहा।। 
                       के पौने सत्रह लाख अर्थ करने की सामर्थ्य शुक्ल जी में ही थी।
फर्रुखाबाद जनपद के कवियों के सन्दर्भ में यदि श्रीमती महादेवी वर्मा (सन्-1907 का नाम न लिया जाये, जिनका जन्म फर्रुखाबाद नगर के साहबगंज मोहल्ले में हुआ था तो जनपद के प्रति अन्याय होगा, श्रीमती महादेवी वर्मा जी के प्रति नहीं। आपके प्रमुख काव्य ग्रंथों में- नीहार, रश्मि, नीरजा, सान्ध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, सन्धिनी आदि उल्लेखनीय हैं। आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका है। इनके काव्य की मूल भावना अलौकिक या रहस्यवाद की है। अलौकिक प्रेम में विरह-वेदना, पीड़ा की ही प्रधानता रहती है अतः महादेवी जी काव्य में इसी पीड़ा या वेदना को प्रमुखता मिली है-
झूम झूम कर मतवाली सी पिये वेदनाओं का प्याला,
प्राणों में रूँध निश्वासें, आती ले मेघों की माला।
आपकी कविताओं की वेदना और पीड़ा का प्रसार न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व में हुआ है।
श्री गिरिवर सहाय जी पाण्डेय, उमाशंकर भट्ट दिनेश चन्द्रमोहन मित्र, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी(लहरें), अवधेश मिश्र दीपक,(मीनाक्षी कमलेश कात्यायन (अन्तर्द्वन्द्व), रघुवर सिंह (शान्ति सतसई)बाल सदाशिव शंकर (श्री शतक, श्री शंकर काव्य निकुंज, श्री शंकर हृदय तरंग, श्री शंकर हृदय), सुरेश चन्द्र और पं० लक्ष्मी नारायण गौड़ विनोद प्रमुख हैं। गौड़ जी प्रारम्भ में श्री हरि के नाम से कविता लिखते थे। विनोद उपनाम कालाकांकर नरेश श्री अवधेश सिंह जू ने दिया था। आप सफल संपादक भी थे। बचनेश जी के साथ दरिद्र नारायण और रसिक नाम के दो पत्रों का संपादन भी बहुत दिनों तक करते रहे। आपकी कविता स्फुट रूप में मिलती है- कलिका, दुखिया माता, परिवर्तन, हार, प्रभात, माँझी, ज्योत्सना, वसन्त वैभव और दैन्य तथा सरिता शीर्षक की बड़ी-बड़ी कविताएँ हैं। शान्तनु नाम का एक खण्ड-काव्य भी लिखा जो अपूर्ण है।
गौड़ जी के समसामयिक कवियों में रघुवर दयाल मिश्र, रघुराज सिंह उपनाम प्रोफेसर रंजन, भजनलाल जी पाण्डेय हरीश राजेन्द्र प्रकाश शुक्ल, रामाधीन त्रिवेदी प्रचण्ड कालका प्रसाद बाजपेई ब्रह्म कालका विश्वम्भर प्रसाद तिवारी संजय भी महत्वपूर्ण हैं। श्रीनाथ प्रसाद मेहरेात्रा श्रान्त फर्रुखाबाद के कवियों में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपका प्रबंध काव्य- अर्जुनोर्वशी महाकाव्य- भीष्म पितामह, गीत संग्रह- गीत पारिजात और शत्रुघ्न नामक काव्य कृतियाँ अपना मौलिक महत्व रखती हैं। अजुनोर्वशी आपका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें आपने अर्जन के भोग-परित्याग मूलक रूप की स्थापना की है। उर्वशी की प्रणय-याचना को स्वीकार कीजिए-
गंगाजल की शपथ मुझे,
मैं तेरी चिर दासी हूँ।
तेरे उदग्र यौवन की मैं,
मानों युग से प्यासी हूँ।
अब तक मैं युग युग से याचित थी,
मम प्रथम याचना तुम हो।
मुझ पर पुष्प चढ़े अब तक थे,
मम प्रथम अर्चना तुम हो।।
श्री रामगुलाम मिश्र उपनाम अबोध मिश्र फर्रुखाबाद नगर के श्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। आपकी कविताएँ अत्यधिक मार्मिक और हृदय स्पर्शी है। शुक से नामक कविता पर पुरस्कृत भी हो चुके हैं। अबोध मिश्र के ही समकालीन व कुछ बाद के कवियों में महावीर प्रसाद त्रिपाठी काव्य तीर्थ डॉ० सतीश चन्द्र चित्रे, जयनारायण पारीक, रमेश चन्द्र जी वर्मा रमेश रामनारायण गुप्त, रायबहादुर शर्मा अभय, हरि नारायण मिश्र पावन, रामस्वरूप बाजपेई, गयाप्रसाद चौधरी, विद्या सक्सेना, कमलेश मिश्र, रमेश भट्टाचार्य, इन्द्रपाल सिंह राठौर जलज, चेतराम शाक्य चन्दन, ओमप्रकाश मिश्र कंचन प्रभृति कवियों की रचनाएँ भी प्रशंसनीय हैं।
काव्य और चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में ख्याति हासिल करने वाले श्री राजेन्द्र नाथ गौड़ गुरु घंटाल भौंरा पुंडरीक उपनाम से कविता करते रहे। आप स्वभाव से बड़े सरल, सहज ओर मृदु हैं। आपके व्यक्तित्व के ये गुण आपकी कविता में भी दिखाई पड़ते हैं। स्वाभाविकता, सरलता, प्रवाहमयता और संप्रेषणीयता होने से भावना का औदात्य बढ़ गया है। मधुर और गम्भीर कविताओं के साथ ही आपने हास्य और व्यंग्यपरक कविताएँ रची हैं। ‘स्नेह सीकर’ नामक अप्रकाशित संग्रह की- देवता बनकर मैं क्या गाऊँ, राह नहीं मेरी पहचानी, अरमानों की अरथी, चाँद हँसने लगा, मधुर-मधुर कुछ बोल कविताएँ बहुत ही सुन्दर हैं।
पिपरगाँव फर्रुखाबाद में जन्में डॉ० मोहन अवस्थी की काव्य कृतियाँ ‘अग्निगंधा’ और ‘अभिशप्त महारथी’ उल्लेखनीय हैं। अभिशप्त महारथी उच्चकोटि का काव्य ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति का चित्र प्रस्तुत किया है और यह आशा प्रकट की है कि यह ग्रंथ ‘देश की आधुनिक समस्याओं का समाधान खोज निकालने में सहायक होगा।’ सम्प्रति इलाहाबाद विश्व विद्यालय हिन्दी विभाग के रीडर पद पर कार्यरत।
अनेक ग्रंथों व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं (नवयुवक संदेश, रसिक, अंकुश, वातायन, चट्टान, सचेतक, सपना, सबल, वागीश्वरी वैभव, नव्यांजलि आदि) से अन्य अनेक कवियों का पता चलता है जिनकी नामावली इस प्रकार है- रामचन्द्र ‘सरल’, दिनेश चन्द्र चतुर्वेदी ‘दिनेश’, नाथूराम कश्यप ‘मस्तराम’, देहाती, कृष्णराम पाराशर, महेशदत्त औदीच्य ‘प्रबल’, रमेश चन्द्र पाण्डेय ‘शलभ’, प्रहलाद नारायण ‘सृजन’, अवधेश कुमार मिश्र ‘दीपक’, मुंशी बाबूराम जी, बाबूराम दीक्षित, भोजराज, जमुना प्रसाद शाक्य, लज्जाराम शुक्ल, इच्छालाल, शिवप्रसाद द्विवेदी, विजय बहादुर अग्निहोत्री, गंगा दयाल त्रिवेदी, शतानन्द संतोषी, गिरिजेश त्रिपाठी, मथुरा प्रसाद मिश्र, उदय नारायण त्रिपाठी ‘अरुणेश’, लक्ष्मी नारायण द्विवेदी, हाकिम सिंह, हरिश्चन्द्र देव जी ‘चातक’, नेह जी, भगवत दयाल त्रिपाठी ‘शंकर’, विमल कुशवाह, डॉ० महेश चन्द्र द्विवेदी ‘प्राण’, मदनगोपाल वैद्य ‘पथिक’, रामाधार श्रीवास्तव ‘नीलम’, शिवसिंह चौहान ‘गुंजन’, हरिदत्त पालीवाल ‘निर्भय’, विश्वेश्वर प्रसाद ‘विनोद’, दयाशरण वर्मा ‘अधीर`, शिवेन्द्र विजय, दफेदार दीक्षित ‘अंचल’, उमाशंकर भट्ट ‘दिनेश’, मदन वर्मा, जगदीश प्रसाद टण्डन ‘अलौकिक’, डॉ. जगदीश व्योम, प्रो. महेश चन्द्र चतुर्वेदी, महेश चन्द्र शर्मा ‘प्रबल’, राजेन्द्र नारायण सक्सेना, डॉ० कृष्ण दीक्षित, ठाकुर गंगा भक्त सिंह ‘भक्त’, रामगोपाल ‘विरही’, श्रीकृष्ण औदीच्य, अम्बरीश ‘अम्बर’, सुधाकर अग्निहोत्री, सुमित नारायण ‘निराधार’, पवन बाथम, कंचन सिंह चौहान ‘कंचन’, रामेन्द्र त्रिपाठी, सोनम यादव, डा. सन्तोष पाण्डेय आदि।


-डा० राजकुमार सिंह
हिन्दी विभाग 
डी.एन. कालेज फतेहगढ़